एक बार मैं महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विद्यापीठ में एमफिल में एडमिशन लेने के लिए प्रवेश परीक्षा देने वर्धा (महाराष्ट्र) गया था। लौटते समय सेवाग्राम स्टेशन से हमें ट्रेन पकडऩी थी। हम कुल पांच लोग थे। स्टेशन पर आने के बाद हमें पता चला कि ट्रेन तीन घंटे लेट है। मैं टिकट काउंटर पर गया और भोपाल के लिए पांच टिकट बुकिंग क्लर्क से मांगे। मैंने उससे साफ-साफ कहा कि भोपाल के लिए केरल एक्सप्रेस के पांच टिकट दीजिए। बुकिंग क्लर्क ने बिना कोई आपत्ति जताए टिकट मेरी ओर बढ़ा दिए।
टिकट लेने के बाद हमलोग प्लेटफार्म पर आ गए। वहां गर्मागर्म दाल की पकौडिय़ां बनते देख मेरे मुंह में पानी आ गया। मैंने पांच प्लेट आर्डर कर दिए। सचमुच वह पकौडिय़ां काफी लजीज थीं। परीक्षा के बारे में गुफ्तगू करते हुए कब तीन घंटे बीत गए, पता ही नहीं चला। तभी उद्घोषणा हुई कि केरल एक्सप्रेस प्लेटफार्म संख्या दो पर आ रही है। हमलोग उस वक्त उसी प्लेटफार्म पर थे, इसलिए कोई भाग-दौड़ नहीं करनी पड़ी। बहरहाल, ट्रेन आई और हमलोग उसपर सवार हो गए। रातभर हमने ट्रेन में खूब मस्ती की। सुबह करीब साढ़े तीन बजे ट्रेन भोपाल स्टेशन पर पहुंची। जब हमलोग स्टेशन से बाहर निकल रहे थे, तो वहां पहले से मौजूद टिकट कलेक्टरों की टीम में से एक ने मेरे एक साथी से टिकट मांगा। मैं आगे निकल चुका था, इसलिए मेरे साथी ने मुझे आवाज दी। मैं वहां पहुंचा और मैंने टिकट कलेक्टर को टिकट दिखाई। टिकट देखने के बाद उसने मुझसे प्रतिव्यक्ति २५६ रुपये जुर्माना मांगा। मैंने जब कारण पूछा, तो उसने कहा कि इस ट्रेन में ६०० किलोमीटर से कम की यात्रा प्रतिबंधित है। मैंने जब उससे कहा कि बुकिंग क्लर्क से ट्रेन का नाम बताकर मैंने टिकट लिया है, फिर भी वह मानने को तैयार नहीं हुआ। मैं उससे उलझने के मूड में था, लेकिन मेरे साथियों में से एक का उसी दिन १० बजे से एक अन्य परीक्षा होने के कारण मैं मजबूर हो गया। हमने जुर्माने की राशि भरी और स्टेशन के बाहर आए।
मेरा यह संस्मरण लिखने का एकमात्र उद्देश्य रेलवे की लापरवाही उजागर करना है। मेरे जैसे प्रतिदिन सैकड़ों लोग रेलवे की लापरवाही का खामियाजा जुर्माना देकर भुगतते हैं। किस ट्रेन से सफर करने के लिए दूरी प्रतिबंध कितने किलोमीटर का है, यह न तो किसी ट्रेन पर अंकित होता है और न ही संबंधित स्टेशनों पर। ऐसे में कोई भी यात्री कैसे जानेगा कि किस ट्रेन से उसे यात्रा करनी है और किससे नहीं। जिस तरह से रेलवे जहरखुरानों से बचने के लिए जागरूक करता है और आग रोकने के लिए ट्रेन सहित स्टेशनों पर जानकारी अंकित करता है, क्या उसी प्रकार ट्रेनों में दूरी प्रतिबंध के प्रति यात्रियों को समुचित जानकारी देना रेलवे की जिम्मेदारी नहीं बनती है?
यह तो हुई ट्रेनों में दूरी प्रतिबंध की। अब यदि ट्रेनों में और स्टेशनों पर अवैध वसूली की बात करें, तो आए दिन अखबरों में इस प्रकार की खबरें पढऩे को मिलती है। कई बार मैंने भी देखा है कि किस प्रकार गरीब और कम पढ़-लिखे लोगों को उल्टा-सीधा नियम बताकर उचित टिकट होने पर अवैध रूप से जुर्माना वसूल लिया जाता है। डर के मारे पीडि़त चुपचाप जुर्माना दे देता है और किसी से कोई शिकायत नहीं करता है। हालांकि कई बार जुर्माने की इस राशि से रेलवे का खजाना भरने की बजाय संबंधित टिकट परीक्षक की जेबें भरती हैं। यह सिलसिला रोज चलता है, लेकिन रेलवे के विजिलेंस अधिकारी न जाने कैसी कुंभकर्णी निद्रा में सोये रहते हैं। रेलवे में भ्रष्टïाचार इस कदर व्याप्त हो गया है कि टिकट बुकिंग से लेकर टिकट चेकिंग कहीं भी रेलयात्री आर्थिक तौर पर सुरक्षित नहीं है। इस समस्या का समाधान तभी निकल सकता है, जब यात्री अपने अधिकारों को समझे और हक के लिए लडऩे से पीछे न हटे। साथ ही विजिलेंस के अधिकारी भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए नियमित औचक छापेमारी की कार्रवाई करते रहे।
शुक्रवार, 17 सितंबर 2010
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