शनिवार, 20 दिसंबर 2008

इस जहाँ को लग गई किसकी नज़र...

इस जहाँ को लग गई किसकी नज़र है,
कौन जाने यह भला किसका कहर है?

आदमी ही आदमी का रिपु बना है,
दो दिलों में छिडी यह कैसी ग़दर है?

ढूँढने से भी नहीं मिलती मोहब्बत,
नफरतों की जाने कैसी यह लहर है?

स्वार्थ ही अब हर दिलों में बस रहा,
यह हवा में घुल रहा कैसा ज़हर है?

हर तरफ़ हत्या, डकैती, राहजनी,
अमन का जाने कहाँ खोया शहर है?

मंजिलों तक जो हमें पहुँचा सके,
अब भला मिलती कहाँ ऐसी डगर है?

उदित होगा फिर से एक सूरज नया,
हमको इसकी आस तो अब भी मगर है।

गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

मौत

मौत को आज मैंने जाना है,
और जीवन को भी पहचाना है।

ज़िन्दगी है अगर कोई संगीत,
तो मौत मस्ती भरा तराना है।

ज़िन्दगी दर्द का समुन्दर है,
तो मौत खुशिओं भरा खजाना है।

मौत ही मंजिले मुसाफिर है,
पर ज़िन्दगी का भी गम उठाना है।

जाने क्यूँ मौत से हम डरते हैं,
ये तो कुदरत का एक नजराना है।

बुधवार, 17 दिसंबर 2008

जानवर हो गए हैं हम...

साहिल थे कभी आज लहर हो गए हैं हम
इस जहाँ को सुधा दे ख़ुद ज़हर हो गए हैं हम।
आज हम ख़ुद को यहाँ ढूंढते फिरते रहे हैं
दुनिया की इस भीड़ में जाने कहाँ खो गए हैं हम।
हम जगाते थे जहाँ को रात और दिन जागकर
क्या हुआ जो आजकल ख़ुद भी सो गए हैं हम।
हमने ही लाशें बिछाई भूलकर सब रिश्तों को
याद करके उनको फ़िर क्यूँ आज रो रहे हैं हम।
जानवर थे हम कभी, आदमी फ़िर बन गए
आदमी से आज फिर जानवर हो गए हैं हम।

मंगलवार, 16 दिसंबर 2008

आख़िर पाक ने दिखा ही दी अपनी औकात.

आतंकवाद के खिलाफ पकिस्तान का कुछ दिन पूर्व आया बयान काफी सराहनीय था। अंतर्राष्ट्रीय दबावों के चलते उसने लश्कर के एक संगठन जमात उद दावा पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। साथ ही इसके दफ्तरों को सील कर दावा प्रमुख मौलाना अब्दुल अज़ीज़ अल्वी को नज़रबंद भी कर दिया था। पाकिस्तान ने जमात के चार आतंकियों को भी गिरफ्तार कर अपनी आतंक के खिलाफ सहयोग करने का दिखावा कर दिया। लेकिन पाकिस्तान की इस कार्रवाई को शुरू से ही संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा था। अब सोमवार को पकिस्तान ने न सिर्फ़ दावा प्रमुख अब्दुल अज़ीज़ की नज़रबंदी हटा दी बल्कि गिरफ्तार किए चार आतंकियों को भी रिहा कर दिया है। इससे पकिस्तान के मनसूबे साफ़ हो गए हैं। उसने यह साबित कर दिया कि दुनियाभर में आतंकवादियों और आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा और प्रोत्साहन देने में पाकिस्तान भी सहयोग कर रहा है। परसों ही पाकिस्तानी संसद में पाक प्रधानमंत्री का यह बयान कि वे अंतर्राष्ट्रीय दबावों में आकर कोई कदम नहीं उठाएंगे। साथ ही भारत के किसी भी कार्रवाई का मुँहतोड़ जवाब दिया जाएगा। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का इतना गैर जिम्मेदाराना बयान हो सकता है कि विपक्ष को शांत करने के लिए दिया गया हो, लेकिन यह बयान न सिर्फ़ दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ा सकता है, बल्कि आतंक के विरुद्ध पाकिस्तान कि कटिबद्धता पर भी सवाल खड़े करता है। इन सभी बातों पर और पाकिस्तान के आतंक के प्रति रवैये से स्पष्ट हो गया है कि सांप को अब ज्यादा दिन तक पालना ठीक नहीं है। इसके पहले कि वह देश दुनिया में अपना ज़हर फैलाये, उसे कुचलकर मार डालना चाहिए।
वैसे भारत के सामने पकिस्तान ही एक खतरा नहीं है, बल्कि कई पश्चिमी देश भी हिन्दुस्तान कि प्रगति में बाधक बने हैं। ये देश चाहते ही नहीं कि भारत-पाक के बीच तनाव कम हो और एशिया में शान्ति व्याप्त हो, क्योंकि इससे इस क्षेत्र में विकास तेजी से होगा और भारत और चीन को महाशक्ति बनने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। इसीलिए अभी भारत को हर मुद्दे पर फूँक-फूँक कर कदम रखने कि ज़रूरत है और आतंक के ख़िलाफ़ स्वयं ही कड़े कदम उठाने कि आवश्यकता है।

गुरुवार, 11 दिसंबर 2008

असली भारत तो यहीं है...

मैं अस्पताल का बिस्तर हूँ। पिछले महीनों में मैंने कुछ सांप्रदायिक हिंसाओं के बारे में सुना। साथ ही महाराष्ट्र में गैर मराठी (उत्तर भारतीय) पर हुए अत्याचार के बारे में भी सुना। बहुत तकलीफ हुई। लेकिन जब मैं अपने अस्पताल के जनरल वार्डको देखता हूँ तो थोड़ा सुकून मिलता है। यहाँ कितना भाईचारा है। मैंने देखा कि मेरे ऊपर एक बिहारी मरीज़ है। मेरे आसपास के बिस्तरों पर कुछ मुस्लिम, सिख, एक मराठी, एक दक्षिण भारतीय और अन्य बिस्तरों पर भी विभिन्न जाति, भाषा, रंग, क्षेत्र, धर्म के लोग भरती हैं। इन सबमे एक महत्त्वपूर्ण बात ये देखने को मिल रही है कि यहाँ ये सभी सिर्फ़ और सिर्फ़ मरीज़ और उनके परिजन हैं। मैंने देखा कि एक हिंदू मरीज़ के परिजन मुस्लिम मरीज़ के परीजनों के साथ काफी हँसी ठिठोली कर रहे हैं।पास ही में एक बिहारी mareez की पाँच साल कि प्यारी सी बच्ची एक मराठी मरीज़ के परिजनों के साथ खेल रही है। वहीँ पर दो दक्षिण भारतीय लोग आपस में बातें कर रहे हैं। जिसकी भाषा नहीं समझ पाने के कारन आसपास के लोग हंस रहे है। लेकिन इससे उन भले मानुषों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। पूरा माहौल खुशनुमा हैं। लोग एक दूसरे के दुःख में शरीक होकर उसे कण करने का प्रयास कर रहे हैं। और इस प्रयास में वे बहुत हद तक सफल भी हो रहे हैं। लोगों को नफरत फैलाने वाले राज ठाकरे जैसे नेताओं से कोई मतलब नहीं हैं। यहाँ जाति, धर्म और क्षेत्र के नाम पर किसी प्रकारका द्वेष नहीं हैं। लोग भले ही इनके नाम पर आपस में लड़ते मरते रहें लेकिन मैं गर्व से कह सकता हूँ की असली भारत तो यही हैं...

बुधवार, 10 दिसंबर 2008

क्या इस बार पाकिस्तान सचमुच गंभीर है?

आज सुबह जब मैंने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री सैयद युसूफ राजा गिलानी की प्रेस कांफ्रेंस सुना, तो उसमे गिलानी साहब बड़े ही सधे हुए लहजे में पत्रकारों के सवालों का जवाब दे रहे थे। उनसे हब आतंकवाद के बारे में उनके रुख के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने काफी गोलमोल जवाब देकर यह जताने की कोसिस की कि वे भी इस मुद्दे के प्रति काफी गंभीर हैं और इसको लेकर कुछ करना चाहते हैं। लेकिन आतंकवाद को ख़तम करने के मुद्दे को लेकर पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने भी भारत के साथ द्विपक्षीय वार्ता में अपनी प्रतिबधता दोहराई थी। साथ ही कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भी आतंकवाद को ख़त्म करने के लिए भारत एवं अन्य देशों का सहयोग करने कि बात कि थी। लेकिन इसके बाद भी वे या तो इसपर रोक लगाने में नाकामयाब रहे या उन्होंने इस दिशा में कोई कदम ही नहीं उठाया। हर बार कि तरह इस बार भी पकिस्तान के प्रधानमंत्री ने आतंकवाद के खिलाफ सहयोग का भरोसा दिलाया है। अब देखना यह है कि क्या इस बार पाकिस्तान कि सरकार सचमुच आतंकवाद के खात्मे को लेकर गंभीर है या भीर अमेरिकी या भारतीय कार्रवाई को तलने के लिए दिया गया बयान है। यदि इसबार भी पाकिस्तान आतंकी शिविरों पर कार्रवाई में नाकाम रहा या कोई लापरवाही दिखाई तो आने वाले समय में उसे गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008

क्या ये महज एक संयोग है...

इस वर्ष देश ने कई आतंकी हमले झेले हैं। जयपुर, अहमदाबाद, दिल्ली, मुंबई। इन सब हमलों पर एक नज़र डाली जाए तो हमें आतंकवादियों के अगले हमले के लिए भी सुराग मिल सकता है। यदि हम इन आतंकी गतिविधियों की तारीखों की ओर ध्यान दे तो हम पाते हैं कि जयपुर धमाके १३ मई को हुआ था और जून में कोई आतंकी घटना नहीं हुई। ठीक इसी प्रकार २६ जुलाई को अहमदाबाद में विस्फोट हुए और फ़िर अगस्त में कुछ भी नहीं हुआ। फ़िर १३ सितम्बर को दिल्ली में आतंकवादी अपने मंसूबों में कामयाब हुए और सिलसिलेबार धमाकों से दिल्ली गूंज उठी। लेकिन इसके बाद अक्टूबर में कुछ नहीं हुआ और एक बार फ़िर आतंकियों ने २६ नवम्बर को मुंबई में आतंकी हमले को अंजाम देकर देश को संकट कि स्थिति में ला खड़ा किया। अब दिसम्बर का महीना चल रहा है और इस महीने ऐसी आशा कि जा सकती है कि कोई आतंकी घटना नहीं हो। लेकिन अगले महीना यानि १३ जनवरी को क्या होगा? क्या इस दिन भी कोई आतंकी हमला हो सकता है? क्या १३, २६ और एक महीने का अन्तराल महज एक संयोग है? ये सभी सवाल न सिर्फ़ हर हिन्दुस्तानी को सोचने पर मजबूर कर सकता है, बल्कि सुरक्षा एजेंसियों के माथे पर भी बल डाल सकता है...

मंगलवार, 2 दिसंबर 2008

यह घोर कलियुग है...

भारत और चीन के बीच १९६२ में हुए युद्ध के बाद कवि प्रदीप ने एक गीत लिखा था- ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आँख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी... इस गीत को लता मंगेशकर ने जब गया तो भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी रो पड़े थे। मशहूर शायर इकबाल ने भी शहीदों के सम्मान में लिखा था - शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले... वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशा होगा... लेकिन शायद उनको यह पता नहीं था कि २१वी सदी में भारत की राजनीति इतनी गन्दी हो जाएगी कि राजनेता शहीदों का अपमान करने से भी नहीं चूकेंगे। पिछले दिनों मुंबई में हुए आतंकी हमलों में शहीद हुए जवानों पर फख्र करने के बजाय देश के राजनेता उनके परिवार को ज़लील करने से भी नहीं चूक रहे है। शहीद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के परिवारवालों के साथ केरल के मुख्यमंत्री का बयान निश्चय ही देश के शहीदों के लिए अपमानजनक है और इस बयां के लिए अच्युतानंदन को अपनी गलती स्वीकार करते हुए नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिए... लेकिन उन्हें अपने बयां पर कोई अफ़सोस नहीं है... और तो और... उनके बयान को कुछ और नेता भी सही ठहरा रहे हैं... उन्हें aisa कहते हुए ज़रा भी शर्म नहीं आ रही है... अरे उन शहीदों कि जगह अपने आप को रख कर देखो... ज़रा अपनों गिरेबान में झांक कर देखो...अपने से ये सवाल पूरी इमानदारी से पूछो...क्या देश कि रक्षा के लिए तुम जान दे सकते हो? है कोई जवाब तुम्हारे पास.... इसका जवाब मेरे पास है... जब लोकतंत्र में जनता के प्रतिनिधि को ही अपनी सुरक्षा के लिए व्लैक कैट कमान्डोस की ज़रूरत पड़ने लगे... उन्हें जनता की जान से ज़्यादा अपनी जान प्यारी हो तो ...कुर्सी के लिए कुछ भी करने को तैयार हो... ऐसा व्यक्ति क्या देश के लिए अपना खून बहायेंगे... और जो व्यक्ति देश के लिए अपना खून नहीं बहा सकता... उसे न तो जनप्रतिनिधि बनने का अधिकार है और न ही इस तरह से देश के वीर जवानो और शहीदों का अपमान करने का अधिकार है... krishna ने द्वापरयुग में ठीक ही कहा था कि कलियुग में वीर और बुजुर्ग अपमानित होंगे और आसुरी शक्तियों का बोलबाला होगा... और जब पाप सर से ऊपर हो जाएगा तब मैं कल्कि अवतार के रूप में मृत्युलोक में आसुरी शक्तियों के संहार के लिए जन्म लूगा... तो मेरा तो कृष्ण से यही प्रार्थना है कि हे कृष्ण... अब धरती पर पाप का घडा भर चुका है... घोर कलियुग आ चुका है... यही समय है तुम्हारे जन्म लेने का... आओ और मानवता को नेता रुपी इन आसुरी शक्तियों से बचा लो...