मंगलवार, 17 मई 2011

कल रात मैंने एक सपना देखा.

कल रात मैंने एक सपना देखा. मैं एक ऐसे देश में गया था, जिसमे हर व्यक्ति खुशहाल था. वहां कोई अमीर नहीं था, कोई गरीब नहीं था. राजा जनता की सेवा में हर पल लगा रहता था. किसीको कोई परेशानी होती थी, तो सभी उसका हल मिल बैठकर निकाल लेते थे. कोई चोरी-बेईमानी नहीं थी. मैंने किसी से पूछा की ये कौन सा देश है, तो मुझे बताया गया की यह भारत देश है. मैंने फिर पूछा कि क्या यह वही लोकतान्त्रिक देश है, जहाँ पहले कभी किसानो से जबरदस्ती उर्वर ज़मीने औद्योगीकरण और विकास के नाम पर चाँद सिक्के देकर छीन लिए जाते थे. जहाँ किसान क़र्ज़ में डूबकर आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते थे. जहाँ जाति और धर्म के नाम पर राजनीति होती थी, जहाँ जनता का वोट पाकर सत्ता हासिल करने वाले कुर्सी पर पहुँचते ही सेवक से स्वामी हो जाते थे. जहाँ सिर्फ अपनी राजनीति रोटियाँ सेंकने के लिए नेता और उसके चमचे पुतला फूंकने और धरना-प्रदर्शन, चक्काजाम, बंद का आयोजन कर आम जनता के लिए परेशानी का सबब बनते थे, जहाँ अमीर और गरीब के बीच इतनी बड़ी खाई थी जिसे पाटना मुश्किल ही नहीं असंभव था, जहाँ धर्म के नाम पर हत्या कोई अपराध नहीं था, जहाँ न्याय गरीबो के लिए नहीं था, जहाँ गरीबो के लिए योजनाये एसी में बैठने और कार में चलने वाले बनाते थे. तब उसने कहा, कि हाँ भाई साहब, ये वही हिन्दुस्तान है. मेरा मन काफी पुलकित था. तभी अलार्म बज गया और मेरी नींद खुल गयी. सपने कि ख़ुशी पल में काफूर हो गयी. लेकिन एक सवाल मेरे मन में अब भी कौंध रहा है कि क्या मेरे सपने वाला भारत का निर्माण अब संभव है?