बचपन से ही दहेज प्रथा को कुरीति बताकर इसे समाज से दूर करने की बात सुनता आया। कई मौकों पर बड़े-बुजुर्गों ने दहेज प्रथा के विरोध में लंबा-चौड़ा भाषण देकर युवाओं को दहेज नहीं लेने के प्रति प्रेरित किया। उस वक्त मैं भी सोचने को मजबूर हो जाता था कि क्या दहेज प्रथा सचमुच इतनी बुरी प्रथा है। आए दिन समाचार पत्रों और टेलिवजन चैनलों पर दहेज हत्या की खबरें इस प्रथा के प्रति नफरत का भाव पैदा करने के लिए काफी था।
मैं जैसे-जैसे बड़ा होने लगा और मेरे अंदर भी सोचने-समझने और निर्णय लेने की झमता का विकास होने लगा, तो मैंने दहेज प्रथा को लेकर काफी मंथन किया और निम्नलिखित नतीजे पर पहुंचा।
१. दहेज लड़कियों का अधिकारः
सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के अनुसार पिता की संपत्ति पर पुत्रों के साथ पुत्रियों का भी बराबर का अधिकार है। हालांकि प्रायोगिक तौर पर देखा जाय तो सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय का पालन करने वाले बहुत कम लोग मिलेंगे। यदि इस निर्णय को माना जाय तो लड़कियों को अपने पिता से उसकी संपत्ति से धन प्राप्त करने का पूरा अधिकार बनता है। शादी के बाद चूंकि लोकलाज और अन्य कारणों से लड़कियां अपने पिता से उसकी संपत्ति में हिस्सा नहीं मांग सकती, इसलिए उसे विवाह के वक्त अपने पिता से दहेज के रूप में धन की मांग करना लड़कियों का अधिकार है।
२. रिश्तों में कायम रहेगी मधुरताः
मान लीजिए कि किसी व्यक्ति की दो पुत्रियां हैं। पहली पुत्री की शादी के समय वर पक्ष किसी प्रकार की दहेज की मांग नहीं करता। वह व्यक्ति विवाह के वक्त अपनी पुत्री को आवश्यक सभी वस्तुएं एवं नाना प्रकार के उपहार देकर विदा करता है, लेकिन दहेज के नाम पर कुछ भी नहीं देता। कुछ दिनों बाद वह अपनी दूसरी पुत्री की शादी करता है। उस दौरान वर पक्ष द्वारा दहेज की मांग की जाती है और लड़की का पिता अपनी पुत्री को खूब सारा दहेज देकर विदा करता है। यह बात बड़ी पुत्री को नागवार गुजरती है और उसका अपने पिता और छोटी बहन से मनमुटाव हो जाता है। वह यदा-कदा उलाहना देने से कभी नहीं चूकती कि आपने मुझे दिया ही क्या है। इस उदाहरण से स्पष्ट हो जाता है कि यदि संबंधों में मधुरता कायम रखनी है तो व्यक्ति अपनी सभी पुत्रियों को बराबर दहेज दे।
३. भविष्य रहेगा सुरक्षितः
भविष्य को किसी ने नहीं देखा। आज की भागदौड़ वाली जिंदगी में कब क्या हो जाए, कहा नहीं जा सकता। ऐसे में धन की आवश्यकता पग-पग पर पड़ती है। रही बात नौकरी की, तो अनिश्चितताओं के इस दौर में कोई नहीं जानता कि किसी व्यक्ति की नौकरी कितनी सुरक्षित है। ऐसे में हर व्यक्ति की चाह होती है कि भविष्य के लिए कुछ पूंजी बनाकर रख ली जाए। एक महत्वपूर्ण बात और है कि यदि किसी महिला का पति किसी दुर्घटना का शिकार होकर जिंदगी खो बैठता है, तो क्या समाज उस महिला का भरण-पोषण करेगा। थोड़े समय के लिए मदद को सैकड़ों हाथ भले ही उठ जाएं, लेकिन यदि ज्यादा समय को ध्यान में रखकर सोचा जाए, तो उस महिला का भविष्य असुरक्षित ही दिखेगा। ऐसे में यदि उस महिला के पास कोई हुनर है तो वह स्वरोजगार से आत्मनिर्भर हो सकती है। स्वरोजगार के लिए भी धन की आवश्यकता होती है और इसमें दहेज में मिले पैसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। एक अन्य बात यह हो सकती है कि किसी दुर्घटना में पति विकलांग हो जाता है और कहीं आने-जाने के काबिल नहीं रह जाता है। ऐसे में भी दहेज का पैसा अपना व्यवसाय शुरू करने में मदद कर सकता है। इसी प्रकार अन्य गंभीर समस्याएं आने पर भी दहेज में मिला धन काफी मददगार साबित हो सकता है।
मैं जैसे-जैसे बड़ा होने लगा और मेरे अंदर भी सोचने-समझने और निर्णय लेने की झमता का विकास होने लगा, तो मैंने दहेज प्रथा को लेकर काफी मंथन किया और निम्नलिखित नतीजे पर पहुंचा।
१. दहेज लड़कियों का अधिकारः
सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के अनुसार पिता की संपत्ति पर पुत्रों के साथ पुत्रियों का भी बराबर का अधिकार है। हालांकि प्रायोगिक तौर पर देखा जाय तो सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय का पालन करने वाले बहुत कम लोग मिलेंगे। यदि इस निर्णय को माना जाय तो लड़कियों को अपने पिता से उसकी संपत्ति से धन प्राप्त करने का पूरा अधिकार बनता है। शादी के बाद चूंकि लोकलाज और अन्य कारणों से लड़कियां अपने पिता से उसकी संपत्ति में हिस्सा नहीं मांग सकती, इसलिए उसे विवाह के वक्त अपने पिता से दहेज के रूप में धन की मांग करना लड़कियों का अधिकार है।
२. रिश्तों में कायम रहेगी मधुरताः
मान लीजिए कि किसी व्यक्ति की दो पुत्रियां हैं। पहली पुत्री की शादी के समय वर पक्ष किसी प्रकार की दहेज की मांग नहीं करता। वह व्यक्ति विवाह के वक्त अपनी पुत्री को आवश्यक सभी वस्तुएं एवं नाना प्रकार के उपहार देकर विदा करता है, लेकिन दहेज के नाम पर कुछ भी नहीं देता। कुछ दिनों बाद वह अपनी दूसरी पुत्री की शादी करता है। उस दौरान वर पक्ष द्वारा दहेज की मांग की जाती है और लड़की का पिता अपनी पुत्री को खूब सारा दहेज देकर विदा करता है। यह बात बड़ी पुत्री को नागवार गुजरती है और उसका अपने पिता और छोटी बहन से मनमुटाव हो जाता है। वह यदा-कदा उलाहना देने से कभी नहीं चूकती कि आपने मुझे दिया ही क्या है। इस उदाहरण से स्पष्ट हो जाता है कि यदि संबंधों में मधुरता कायम रखनी है तो व्यक्ति अपनी सभी पुत्रियों को बराबर दहेज दे।
३. भविष्य रहेगा सुरक्षितः
भविष्य को किसी ने नहीं देखा। आज की भागदौड़ वाली जिंदगी में कब क्या हो जाए, कहा नहीं जा सकता। ऐसे में धन की आवश्यकता पग-पग पर पड़ती है। रही बात नौकरी की, तो अनिश्चितताओं के इस दौर में कोई नहीं जानता कि किसी व्यक्ति की नौकरी कितनी सुरक्षित है। ऐसे में हर व्यक्ति की चाह होती है कि भविष्य के लिए कुछ पूंजी बनाकर रख ली जाए। एक महत्वपूर्ण बात और है कि यदि किसी महिला का पति किसी दुर्घटना का शिकार होकर जिंदगी खो बैठता है, तो क्या समाज उस महिला का भरण-पोषण करेगा। थोड़े समय के लिए मदद को सैकड़ों हाथ भले ही उठ जाएं, लेकिन यदि ज्यादा समय को ध्यान में रखकर सोचा जाए, तो उस महिला का भविष्य असुरक्षित ही दिखेगा। ऐसे में यदि उस महिला के पास कोई हुनर है तो वह स्वरोजगार से आत्मनिर्भर हो सकती है। स्वरोजगार के लिए भी धन की आवश्यकता होती है और इसमें दहेज में मिले पैसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। एक अन्य बात यह हो सकती है कि किसी दुर्घटना में पति विकलांग हो जाता है और कहीं आने-जाने के काबिल नहीं रह जाता है। ऐसे में भी दहेज का पैसा अपना व्यवसाय शुरू करने में मदद कर सकता है। इसी प्रकार अन्य गंभीर समस्याएं आने पर भी दहेज में मिला धन काफी मददगार साबित हो सकता है।