कल रात मैंने एक सपना देखा. मैं एक ऐसे देश में गया था, जिसमे हर व्यक्ति खुशहाल था. वहां कोई अमीर नहीं था, कोई गरीब नहीं था. राजा जनता की सेवा में हर पल लगा रहता था. किसीको कोई परेशानी होती थी, तो सभी उसका हल मिल बैठकर निकाल लेते थे. कोई चोरी-बेईमानी नहीं थी. मैंने किसी से पूछा की ये कौन सा देश है, तो मुझे बताया गया की यह भारत देश है. मैंने फिर पूछा कि क्या यह वही लोकतान्त्रिक देश है, जहाँ पहले कभी किसानो से जबरदस्ती उर्वर ज़मीने औद्योगीकरण और विकास के नाम पर चाँद सिक्के देकर छीन लिए जाते थे. जहाँ किसान क़र्ज़ में डूबकर आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते थे. जहाँ जाति और धर्म के नाम पर राजनीति होती थी, जहाँ जनता का वोट पाकर सत्ता हासिल करने वाले कुर्सी पर पहुँचते ही सेवक से स्वामी हो जाते थे. जहाँ सिर्फ अपनी राजनीति रोटियाँ सेंकने के लिए नेता और उसके चमचे पुतला फूंकने और धरना-प्रदर्शन, चक्काजाम, बंद का आयोजन कर आम जनता के लिए परेशानी का सबब बनते थे, जहाँ अमीर और गरीब के बीच इतनी बड़ी खाई थी जिसे पाटना मुश्किल ही नहीं असंभव था, जहाँ धर्म के नाम पर हत्या कोई अपराध नहीं था, जहाँ न्याय गरीबो के लिए नहीं था, जहाँ गरीबो के लिए योजनाये एसी में बैठने और कार में चलने वाले बनाते थे. तब उसने कहा, कि हाँ भाई साहब, ये वही हिन्दुस्तान है. मेरा मन काफी पुलकित था. तभी अलार्म बज गया और मेरी नींद खुल गयी. सपने कि ख़ुशी पल में काफूर हो गयी. लेकिन एक सवाल मेरे मन में अब भी कौंध रहा है कि क्या मेरे सपने वाला भारत का निर्माण अब संभव है?
मंगलवार, 17 मई 2011
बुधवार, 27 अप्रैल 2011
कैरेक्टर ढीला गाने पर रोक लगे
इन दिनों फिल्म रेडी का एक गाना कैरेक्टर ढीला काफी प्रचलन में है. इसे पसंद भी किया जा रहा है. हालाँकि मुझे इस गाने में प्रयुक्त शब्द रासलीला पर आपत्ति है. रासलीला शब्द भगवान् श्री कृष्ण से जुदा है, जिसका अर्थ ऐसी लीला या क्रीडा से है, जिससे रस की अनुभूति हो. इनमे कही भी स्वार्थ या अपवित्रता का कोई स्थान नहीं था. शैलेन्द्र सिंह कुशवाह रासलीला के बारे में लिखते हैं, प्राचीन भारतीय संस्कृति में प्रेम की उदात्त अभिव्यक्ति होती थी। कृष्ण की रासलीला इसका प्रतीक है। भक्तिकाव्य में रासलीला शब्द का खूब प्रयोग हुआ है। दरअसल रास एक कलाविधा है। प्रेम और आनंद की उत्कट अभिव्यक्ति के लिए कृष्ण की उदात्त प्रेमलीलाओं का भावाभिनय ही रासलीला कहलाता है। मूलतः यह एक नृत्य है जिसमें कृष्ण को केंद्र में रख गोपियां उनकी परिधि में मुरली की धुन पर थिरकती हैं। अष्टछाप के भक्तकवियों नें प्रेमाभिव्यक्ति करनेवाले अनेक रासगीतों की रचना की है। रास में आध्यात्मिकता भी है जिसमें गोपियों का कृष्ण के प्रति अनुराग व्यक्त होता है। ऐसे में इस गाने में रासलीला शब्द का प्रयोग काफी भोंडेपन में किया गया है. इस गाने में रासलीला शब्द की पवित्रता पर कुठाराघात किया है. इस गाने पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाना चाहिए.
शनिवार, 29 जनवरी 2011
दहेज क्यों जरूरी
बचपन से ही दहेज प्रथा को कुरीति बताकर इसे समाज से दूर करने की बात सुनता आया। कई मौकों पर बड़े-बुजुर्गों ने दहेज प्रथा के विरोध में लंबा-चौड़ा भाषण देकर युवाओं को दहेज नहीं लेने के प्रति प्रेरित किया। उस वक्त मैं भी सोचने को मजबूर हो जाता था कि क्या दहेज प्रथा सचमुच इतनी बुरी प्रथा है। आए दिन समाचार पत्रों और टेलिवजन चैनलों पर दहेज हत्या की खबरें इस प्रथा के प्रति नफरत का भाव पैदा करने के लिए काफी था।
मैं जैसे-जैसे बड़ा होने लगा और मेरे अंदर भी सोचने-समझने और निर्णय लेने की झमता का विकास होने लगा, तो मैंने दहेज प्रथा को लेकर काफी मंथन किया और निम्नलिखित नतीजे पर पहुंचा।
१. दहेज लड़कियों का अधिकारः
सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के अनुसार पिता की संपत्ति पर पुत्रों के साथ पुत्रियों का भी बराबर का अधिकार है। हालांकि प्रायोगिक तौर पर देखा जाय तो सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय का पालन करने वाले बहुत कम लोग मिलेंगे। यदि इस निर्णय को माना जाय तो लड़कियों को अपने पिता से उसकी संपत्ति से धन प्राप्त करने का पूरा अधिकार बनता है। शादी के बाद चूंकि लोकलाज और अन्य कारणों से लड़कियां अपने पिता से उसकी संपत्ति में हिस्सा नहीं मांग सकती, इसलिए उसे विवाह के वक्त अपने पिता से दहेज के रूप में धन की मांग करना लड़कियों का अधिकार है।
२. रिश्तों में कायम रहेगी मधुरताः
मान लीजिए कि किसी व्यक्ति की दो पुत्रियां हैं। पहली पुत्री की शादी के समय वर पक्ष किसी प्रकार की दहेज की मांग नहीं करता। वह व्यक्ति विवाह के वक्त अपनी पुत्री को आवश्यक सभी वस्तुएं एवं नाना प्रकार के उपहार देकर विदा करता है, लेकिन दहेज के नाम पर कुछ भी नहीं देता। कुछ दिनों बाद वह अपनी दूसरी पुत्री की शादी करता है। उस दौरान वर पक्ष द्वारा दहेज की मांग की जाती है और लड़की का पिता अपनी पुत्री को खूब सारा दहेज देकर विदा करता है। यह बात बड़ी पुत्री को नागवार गुजरती है और उसका अपने पिता और छोटी बहन से मनमुटाव हो जाता है। वह यदा-कदा उलाहना देने से कभी नहीं चूकती कि आपने मुझे दिया ही क्या है। इस उदाहरण से स्पष्ट हो जाता है कि यदि संबंधों में मधुरता कायम रखनी है तो व्यक्ति अपनी सभी पुत्रियों को बराबर दहेज दे।
३. भविष्य रहेगा सुरक्षितः
भविष्य को किसी ने नहीं देखा। आज की भागदौड़ वाली जिंदगी में कब क्या हो जाए, कहा नहीं जा सकता। ऐसे में धन की आवश्यकता पग-पग पर पड़ती है। रही बात नौकरी की, तो अनिश्चितताओं के इस दौर में कोई नहीं जानता कि किसी व्यक्ति की नौकरी कितनी सुरक्षित है। ऐसे में हर व्यक्ति की चाह होती है कि भविष्य के लिए कुछ पूंजी बनाकर रख ली जाए। एक महत्वपूर्ण बात और है कि यदि किसी महिला का पति किसी दुर्घटना का शिकार होकर जिंदगी खो बैठता है, तो क्या समाज उस महिला का भरण-पोषण करेगा। थोड़े समय के लिए मदद को सैकड़ों हाथ भले ही उठ जाएं, लेकिन यदि ज्यादा समय को ध्यान में रखकर सोचा जाए, तो उस महिला का भविष्य असुरक्षित ही दिखेगा। ऐसे में यदि उस महिला के पास कोई हुनर है तो वह स्वरोजगार से आत्मनिर्भर हो सकती है। स्वरोजगार के लिए भी धन की आवश्यकता होती है और इसमें दहेज में मिले पैसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। एक अन्य बात यह हो सकती है कि किसी दुर्घटना में पति विकलांग हो जाता है और कहीं आने-जाने के काबिल नहीं रह जाता है। ऐसे में भी दहेज का पैसा अपना व्यवसाय शुरू करने में मदद कर सकता है। इसी प्रकार अन्य गंभीर समस्याएं आने पर भी दहेज में मिला धन काफी मददगार साबित हो सकता है।
मैं जैसे-जैसे बड़ा होने लगा और मेरे अंदर भी सोचने-समझने और निर्णय लेने की झमता का विकास होने लगा, तो मैंने दहेज प्रथा को लेकर काफी मंथन किया और निम्नलिखित नतीजे पर पहुंचा।
१. दहेज लड़कियों का अधिकारः
सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के अनुसार पिता की संपत्ति पर पुत्रों के साथ पुत्रियों का भी बराबर का अधिकार है। हालांकि प्रायोगिक तौर पर देखा जाय तो सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय का पालन करने वाले बहुत कम लोग मिलेंगे। यदि इस निर्णय को माना जाय तो लड़कियों को अपने पिता से उसकी संपत्ति से धन प्राप्त करने का पूरा अधिकार बनता है। शादी के बाद चूंकि लोकलाज और अन्य कारणों से लड़कियां अपने पिता से उसकी संपत्ति में हिस्सा नहीं मांग सकती, इसलिए उसे विवाह के वक्त अपने पिता से दहेज के रूप में धन की मांग करना लड़कियों का अधिकार है।
२. रिश्तों में कायम रहेगी मधुरताः
मान लीजिए कि किसी व्यक्ति की दो पुत्रियां हैं। पहली पुत्री की शादी के समय वर पक्ष किसी प्रकार की दहेज की मांग नहीं करता। वह व्यक्ति विवाह के वक्त अपनी पुत्री को आवश्यक सभी वस्तुएं एवं नाना प्रकार के उपहार देकर विदा करता है, लेकिन दहेज के नाम पर कुछ भी नहीं देता। कुछ दिनों बाद वह अपनी दूसरी पुत्री की शादी करता है। उस दौरान वर पक्ष द्वारा दहेज की मांग की जाती है और लड़की का पिता अपनी पुत्री को खूब सारा दहेज देकर विदा करता है। यह बात बड़ी पुत्री को नागवार गुजरती है और उसका अपने पिता और छोटी बहन से मनमुटाव हो जाता है। वह यदा-कदा उलाहना देने से कभी नहीं चूकती कि आपने मुझे दिया ही क्या है। इस उदाहरण से स्पष्ट हो जाता है कि यदि संबंधों में मधुरता कायम रखनी है तो व्यक्ति अपनी सभी पुत्रियों को बराबर दहेज दे।
३. भविष्य रहेगा सुरक्षितः
भविष्य को किसी ने नहीं देखा। आज की भागदौड़ वाली जिंदगी में कब क्या हो जाए, कहा नहीं जा सकता। ऐसे में धन की आवश्यकता पग-पग पर पड़ती है। रही बात नौकरी की, तो अनिश्चितताओं के इस दौर में कोई नहीं जानता कि किसी व्यक्ति की नौकरी कितनी सुरक्षित है। ऐसे में हर व्यक्ति की चाह होती है कि भविष्य के लिए कुछ पूंजी बनाकर रख ली जाए। एक महत्वपूर्ण बात और है कि यदि किसी महिला का पति किसी दुर्घटना का शिकार होकर जिंदगी खो बैठता है, तो क्या समाज उस महिला का भरण-पोषण करेगा। थोड़े समय के लिए मदद को सैकड़ों हाथ भले ही उठ जाएं, लेकिन यदि ज्यादा समय को ध्यान में रखकर सोचा जाए, तो उस महिला का भविष्य असुरक्षित ही दिखेगा। ऐसे में यदि उस महिला के पास कोई हुनर है तो वह स्वरोजगार से आत्मनिर्भर हो सकती है। स्वरोजगार के लिए भी धन की आवश्यकता होती है और इसमें दहेज में मिले पैसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। एक अन्य बात यह हो सकती है कि किसी दुर्घटना में पति विकलांग हो जाता है और कहीं आने-जाने के काबिल नहीं रह जाता है। ऐसे में भी दहेज का पैसा अपना व्यवसाय शुरू करने में मदद कर सकता है। इसी प्रकार अन्य गंभीर समस्याएं आने पर भी दहेज में मिला धन काफी मददगार साबित हो सकता है।
रविवार, 16 जनवरी 2011
बैलों की चिंता
कल जब मैं एक तबेले के निकट से गुजर रहा था, तो दो बैलों को आपस में बातें करते सुना। दोनों चिंतित दिख रहे थे और काफी गंभीर मुद्दे पर बात कर रहे थे। पहला बैल बोला- यार सरकार ने एक बार फिर पेट्रोल की कीमतें बढ़ा दी हैं। दूसरे बैल ने कहा- तो इसमें तुम्हें चिंतित होने की क्या जरूरत है, जो लोग पेट्रोल का इस्तेमाल करते हैं उन्हें इसके बारे में सोचने दो। तब पहले बैल ने कहा- अब मैं क्या बताऊं? पेट्रोल का मूल्य बढऩे का असर सीधे-सीधे हमलोगों के स्वास्थ पर पडऩे वाला है।
दूसरा- वो कैसे?
पहला- अरे यार, अब लोग कार-मोटरसाइकिल तो चला नहीं पाएंगे। तो उन्हें वापस अपनी बैलगाड़ी निकालनी पड़ेगी। और बैलगाड़ी में जोतेंगे तो हमें ही।
दूसरा- भाई, ठीक कहा तुमने। ये तो सचमुच काफी गंभीर विषय है। अच्छा, अब हमें क्या करना चाहिए।
पहला- कुछ नहीं, भगवान से प्रार्थना करो कि सरकार को सुबुद्धि आए और वह पेट्रो पदार्थों की कीमतें नियंत्रित करें। तभी महंगाई पर भी रोक लगेगी और हमें भी राहत मिल जाएगी।
दूसरा- वो कैसे?
पहला- अरे यार, अब लोग कार-मोटरसाइकिल तो चला नहीं पाएंगे। तो उन्हें वापस अपनी बैलगाड़ी निकालनी पड़ेगी। और बैलगाड़ी में जोतेंगे तो हमें ही।
दूसरा- भाई, ठीक कहा तुमने। ये तो सचमुच काफी गंभीर विषय है। अच्छा, अब हमें क्या करना चाहिए।
पहला- कुछ नहीं, भगवान से प्रार्थना करो कि सरकार को सुबुद्धि आए और वह पेट्रो पदार्थों की कीमतें नियंत्रित करें। तभी महंगाई पर भी रोक लगेगी और हमें भी राहत मिल जाएगी।
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