सोमवार, 12 जनवरी 2009

अगले जनम मोहे बेटबा ना कीजो...

मेरा एक साथी नौकरी की तलाश में पिछले दिनों दिल्ली गया था। वह भी पत्रकारिता के क्षेत्र में ही अपने करियर की शुरुआत कर रहा है। उसने न सिर्फ़ दिल्ली की सड़कों की खाक छानी बल्कि कई मीडिया संस्थानों के भी चक्कर लगाये। वैसे उनकी नौकरी की तलाश तो पूरी नहीं हो पाई और उन्हें वापस भोपाल लौटना पड़ा। लेकिन उनके साथ एक बड़ा ही दिलचस्प वाकया हुआ। हुआ यूँ कि वह घूमते-घूमते एक पत्रिका व्यूज़ ऑन न्यूज़ के कार्यालय जा पहुंचे। वहां उनकी मुलाकात पत्रिका कि हेड से हुई। उन्होंने मेरे साथी से न सिर्फ़ आत्मीयता से बात कि बल्कि चाय नाश्ता भी कराया। इस दौरान बातचीत का क्रम चल निकला। राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर काफी देर तक चर्चा होने के बाद जब बात मीडिया में नौकरी कि आई तो मोहतरमा ने मेरे साथी से कहा... काश तुम एक लड़की होते तो तुम्हे नौकरी के लिए इतना भटकना नहीं पड़ता। तब अचानक ही उसे फ़िल्म उम्राओ जान का वह गाना याद आ गया- अबके जनम मोहे बिटिया न कीजो। और मैडम के सामने ही उसके मुह से निकल गया- ...हे भगवान्...अबके जनम मोहे बेटवा न कीजो...

1 टिप्पणी:

Rajat Abhinav ने कहा…

Bahut Badhiya Sir,bilkul satik example diya hai aapne.aaj kal pata nahi kyoun media main Ladkiyon ki puch achanak se kyoun badh gayi hai.Ya to wai expolite hoti hai ya unhone bhi is expolitation ko jariya bana liya hai media main bina yogyata aur pahunch ke aasan entry ka. Ab hame yani purush warg ko gender inequality ka samna karna pad raha hai,aur is baar Ladkiya hame santwana deti dikhayi de rahi hai.