गुरुवार, 11 दिसंबर 2008
असली भारत तो यहीं है...
मैं अस्पताल का बिस्तर हूँ। पिछले महीनों में मैंने कुछ सांप्रदायिक हिंसाओं के बारे में सुना। साथ ही महाराष्ट्र में गैर मराठी (उत्तर भारतीय) पर हुए अत्याचार के बारे में भी सुना। बहुत तकलीफ हुई। लेकिन जब मैं अपने अस्पताल के जनरल वार्डको देखता हूँ तो थोड़ा सुकून मिलता है। यहाँ कितना भाईचारा है। मैंने देखा कि मेरे ऊपर एक बिहारी मरीज़ है। मेरे आसपास के बिस्तरों पर कुछ मुस्लिम, सिख, एक मराठी, एक दक्षिण भारतीय और अन्य बिस्तरों पर भी विभिन्न जाति, भाषा, रंग, क्षेत्र, धर्म के लोग भरती हैं। इन सबमे एक महत्त्वपूर्ण बात ये देखने को मिल रही है कि यहाँ ये सभी सिर्फ़ और सिर्फ़ मरीज़ और उनके परिजन हैं। मैंने देखा कि एक हिंदू मरीज़ के परिजन मुस्लिम मरीज़ के परीजनों के साथ काफी हँसी ठिठोली कर रहे हैं।पास ही में एक बिहारी mareez की पाँच साल कि प्यारी सी बच्ची एक मराठी मरीज़ के परिजनों के साथ खेल रही है। वहीँ पर दो दक्षिण भारतीय लोग आपस में बातें कर रहे हैं। जिसकी भाषा नहीं समझ पाने के कारन आसपास के लोग हंस रहे है। लेकिन इससे उन भले मानुषों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। पूरा माहौल खुशनुमा हैं। लोग एक दूसरे के दुःख में शरीक होकर उसे कण करने का प्रयास कर रहे हैं। और इस प्रयास में वे बहुत हद तक सफल भी हो रहे हैं। लोगों को नफरत फैलाने वाले राज ठाकरे जैसे नेताओं से कोई मतलब नहीं हैं। यहाँ जाति, धर्म और क्षेत्र के नाम पर किसी प्रकारका द्वेष नहीं हैं। लोग भले ही इनके नाम पर आपस में लड़ते मरते रहें लेकिन मैं गर्व से कह सकता हूँ की असली भारत तो यही हैं...
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1 टिप्पणी:
la jawab sir................
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